भारत की ऐतिहासिक और वैज्ञानिक विरासत में जो नाम गर्व से लिया जाता है, उनमें से एक है — जंतर-मंतर। दिल्ली के संसद मार्ग से कनॉट प्लेस की ओर बढ़ते हुए, जैसे ही आप थोड़ी दूरी तय करते हैं, गुलाबी पत्थरों से बने कुछ अजीबोगरीब से लगने वाले ढांचे दिखाई देने लगते हैं। पर ये कोई आम स्थापत्य कला के नमूने नहीं हैं — ये हैं महाराजा जय सिंह द्वितीय द्वारा निर्मित खगोलीय वेधशालाएं।

🔭 राजा जयसिंह द्वितीय का खगोल विज्ञान से प्रेम
राजा जय सिंह द्वितीय न केवल एक कुशल योद्धा थे, बल्कि वे खगोल विज्ञान के गहरे जानकार और प्रेमी भी थे। उन्हें विश्वास था कि खगोलशास्त्र केवल ज्योतिष का विषय नहीं, बल्कि मानव कल्याण का मार्गदर्शक विज्ञान है। यही कारण था कि उन्होंने भारत में खगोलीय गणनाओं को अधिक सटीक बनाने के उद्देश्य से कई वेधशालाएं बनवाने का निर्णय लिया।
दिल्ली का जंतर-मंतर 1725 ई. में बनकर तैयार हुआ। इसे बनाने से पहले उन्होंने अपने विद्वानों को विदेशों की वेधशालाओं का अध्ययन करने के लिए भेजा था, ताकि वे आधुनिक उपकरणों और विधियों को जान सकें और उन्हें भारत में लागू कर सकें।
🕰️ ‘धूप घड़ियों का राजकुमार’ — सम्राट यंत्र
दिल्ली स्थित जंतर-मंतर का सबसे प्रमुख और आकर्षक उपकरण है — सम्राट यंत्र, जिसे ‘Prince of Dials’ भी कहा जाता है। यह एक विशाल सूर्य घड़ी है, जो सूर्य की छाया के आधार पर समय का मापन करती है। इसकी सटीकता इतनी अधिक है कि आज भी यह कुछ सेकंड के भीतर समय की गणना कर सकती है।
इस यंत्र की ऊंचाई लगभग 27 मीटर है और यह इस वेधशाला का सबसे ऊंचा ढांचा है। यह समय, ऋतुओं के परिवर्तन और सूर्य की गति के विश्लेषण में सहायक होता था।
🧭 और भी यंत्र — विज्ञान की सजीव प्रतिमाएं
दिल्ली के जंतर-मंतर परिसर में 13 प्रमुख खगोलीय यंत्र हैं, जिनमें शामिल हैं:
जयप्रकाश यंत्र – आकाशीय पिंडों की स्थिति जानने के लिए।
राम यंत्र – उन्नयन कोण और आज़ीमुथ मापन के लिए।
मिश्र यंत्र – सूर्य की वर्षगांठ और अन्य खगोलीय घटनाओं की गणना हेतु।
हर एक यंत्र की बनावट और संरचना इस प्रकार की गई थी कि वो बिना किसी दूरबीन या तकनीकी उपकरण के खगोलीय गणनाओं को सटीकता से पूरा कर सके।
🗺️ भारत के अन्य जंतर-मंतर
दिल्ली के अलावा महाराजा जय सिंह द्वितीय ने देश के विभिन्न हिस्सों में भी वेधशालाएं बनवाई थीं:
जयपुर (सबसे भव्य और विस्तृत जंतर-मंतर)
उज्जैन
वाराणसी
मथुरा (अब नष्ट हो चुकी है)
इन सभी वेधशालाओं का उद्देश्य एक ही था — भारत को खगोल विज्ञान में आत्मनिर्भर और वैज्ञानिक रूप से उन्नत बनाना।
🏛️ आज का महत्व
आज जंतर-मंतर सिर्फ एक ऐतिहासिक स्थल नहीं है, बल्कि यह भारतीय विज्ञान की प्राचीन प्रगति का एक जीवंत प्रमाण है। यह UNESCO की विश्व धरोहर सूची में शामिल है और देश-विदेश से पर्यटक इसे देखने आते हैं।
यह स्थान छात्रों, शोधकर्ताओं और विज्ञान प्रेमियों के लिए एक प्रेरणा का स्रोत है।
✍️ लेखक की ओर से
“जब आधुनिक विज्ञान की बात होती है तो अक्सर हम पश्चिम की ओर देखते हैं। परंतु जंतर-मंतर जैसे स्थल यह याद दिलाते हैं कि हमारे पूर्वजों ने भी आकाश को मापने के यंत्र स्वयं बनाए, और वह भी बिना किसी डिजिटल तकनीक के। यह भारत की वैज्ञानिक सोच और धरोहर की सच्ची मिसाल है।”